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यु॒ष्माँ उ॒ नक्त॑मू॒तये॑ यु॒ष्मान्दिवा॑ हवामहे । यु॒ष्मान्प्र॑य॒त्य॑ध्व॒रे ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yuṣmām̐ u naktam ūtaye yuṣmān divā havāmahe | yuṣmān prayaty adhvare ||

पद पाठ

यु॒ष्मान् । ऊँ॒ इति॑ । नक्त॑म् । ऊ॒तये॑ । यु॒ष्मान् । दिवा॑ । ह॒वा॒म॒हे॒ । यु॒ष्मान् । प्र॒ऽय॒ति । अ॒ध्व॒रे ॥ ८.७.६

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:7» मन्त्र:6 | अष्टक:5» अध्याय:8» वर्ग:19» मन्त्र:1 | मण्डल:8» अनुवाक:2» मन्त्र:6


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शिव शंकर शर्मा

प्रथम प्राण वशीकर्त्तव्य हैं, यह दिखलाते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - बाह्यवायु का निरूपण करके पुनः आभ्यन्तर प्राणों का वर्णन करते हैं। यथा−हे प्राणो अर्थात् हे इन्द्रियो ! (नक्तम्) रात्रि में (ऊतये) रक्षा और साहाय्य के लिये (युष्मान्+उ) आपकी ही (हवामहे) स्तुति करते हैं (दिवा) दिन में और (अध्वरे+प्रयति) यज्ञ के समय में (युष्मान्) आपकी ही स्तुति करते हैं ॥६॥
भावार्थभाषाः - इन्द्रियों को वश में करने से ही मनुष्य विधिवत् शुभ कर्म कर सकता है। अतः वेद कहते हैं कि रात्रि दिन और शुभ कर्म के समय प्रथम इन्द्रियों को वशीभूत बना लो, अन्यथा सब कर्म निष्फल हो जाएँगे ॥६॥
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आर्यमुनि

अब अभ्युदयप्राप्ति का हेतु वर्णन करते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - हे योद्धाओ ! (ऊतये) आत्मरक्षा के लिये (नक्तं, युष्मान्, उ) रात्रि में आपका ही (हवामहे) आह्वान करते हैं (दिवा, युष्मान्) दिन में आपका ही और (प्रयाति, अध्वरे) यज्ञ के प्रारम्भ में आपका ही आह्वान करते हैं ॥६॥
भावार्थभाषाः - यज्ञ में क्षात्रधर्मवेत्ता सैनिक और पदार्थविद्यावेत्ता विद्वान् तथा अध्यात्मविद्यावेत्ता योगीजन इत्यादि विद्वानों का सत्कार करना अभ्युदय का हेतु है ॥६॥
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शिव शंकर शर्मा

प्रथमं प्राणा वशीकर्तव्या इति दर्शयति।

पदार्थान्वयभाषाः - हे मरुतः प्राणाः। उ एवार्थः। नक्तम्=रात्रौ। युष्मानेव। ऊतये=रक्षायै। हवामहे। दिवा=दिने। युष्मान् हवामहे। अध्वरे=यागे। प्रयति=गच्छति सति। युष्मानेव हवामहे ॥६॥
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आर्यमुनि

अथाभ्युदयप्राप्तिहेतुर्वर्ण्यते।

पदार्थान्वयभाषाः - हे योद्धारः ! (ऊतये) स्वरक्षायै (नक्तम्, युष्मान्, उ) रात्रौ युष्मानेव (हवामहे) आह्वयामः (दिवा, युष्मान्) दिने युष्मानेव (प्रयति) प्रारब्धे (अध्वरे) यज्ञे (युष्मान्) युष्मानेव आह्वयामः ॥६॥